घोंसला बनाने में ..
हम यूँ मशगूल हो गए ..!
कि उड़ने को पंख भी थे ..
ये भी भूल गए ..!!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
घोंसला बनाने में ..
हम यूँ मशगूल हो गए ..!
कि उड़ने को पंख भी थे ..
ये भी भूल गए ..!!!
जाने क्यूँ आजकल, तुम्हारी कमी अखरती है बहुत
यादों के बन्द कमरे में, ज़िन्दगी सिसकती है बहुत
पनपने नहीं देता कभी, बेदर्द सी उस ख़्वाहिश को
महसूस तुम्हें जो करने की, कोशिश करती है बहुत..
कितना प्यार है तुमसे, वो लफ्ज़ों के सहारे कैसे बताऊँ,
महसूस कर मेरे एहसास को, अब गवाही कहाँ से लाऊँ।
मनमौजी दिल का सरल, मानव रहे प्रसन्न।
तुनक़मिजाज़ी आदमी, रहता हरदम सन्न।।
किसी और का हाथ कैसे थाम लूँ..
तू तन्हा मिल गई तो क्या जवाब दूँगा..
बहुत सोचना पड़ता है अब मुँह खोलने से पहले,,
क्यूंकि अब दुनियाँ दिल से नहीं दिमाग से रिश्ते निभाती है …!!
मेरी जिन्दगी को अधूरा कर दिया ।
वाह रे मोहब्बत तुने अपना काम पूरा कर दिया।
तुम ठीक तो हो ना…आज फिर बायीं आँख फड़क रही है मेरी..
तन्हा सा हो गया हूँ तेरे शहर में
बे सुध सा हो गया हूँ तेरे शहर में
लोगो की भीड़ में तुझको खोजता
मैं खुद ही खो गया हूँ तेरे शहर में दर्पण
तू कितनी भी खूबसूरत क्यूँ ना हो ए ज़िंदगी,
खुशमिजाज़ दोस्तों के बगैर तू अच्छी नहीं लगती।