ख़ुबसूरत था इस क़दर के महसूस ना
हुआ..
कैसे,कहाँ और कब मेरा बचपन चला गया….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ख़ुबसूरत था इस क़दर के महसूस ना
हुआ..
कैसे,कहाँ और कब मेरा बचपन चला गया….
कब तक लफ़्ज़ों की
कारीगरी करता रहूँ…
…
समझ जाओ ना that I love you
लौटा देता कोई
एक दिन
नाराज़ हो कर …
काश बचपन भी मेरा
कोई अवॉर्ड होता…
ऐ उम्र कुछ कहा मैंने,
शायद तूने सुना नहीं….
तू छीन सकती है बचपन मेरा , बचपना नहीं…
कहाँ छुपा के रख दूँ मैं
अपने हिस्से की शराफत !
जिधर भी देखता हूँ !! उधर बेईमान खड़े हैं !
अभी तो तड़प-तड़प के
दिन के उजालों से निकला हू…
.
न जाने रात के अँधेरे और कितना रुलायेंगे.
जो सपने हमने बोये थे
नीम की ठंडी छाओ में,
.
कुछ पनघट पर छूट गए कुछ कागज की नाव में.
स्याही की भी मंज़िल का
अंदाज़ देखिये :
खुद-ब-खुद बिखरती है, तो दाग़ बनाती है,
जब कोई बिखेरता है, तो
अलफ़ाज़…बनाती है…!!
साफ़ दिल से
मुलाक़ात की आदत डलों यारों
क्यूँ की घुल हटती है तो अाईने भी चमक उठते है
ज़िन्दगी के हाथ नहीं
होते..
लेकिन कभी कभी वो ऐसा थप्पड़ मारती हैं जो पूरी उम्र
याद रहता हैं