ऐ उम्र कुछ

ऐ उम्र कुछ कहा मैंने,

शायद तूने सुना नहीं….
तू छीन सकती है बचपन मेरा , बचपना नहीं…

अभी तो तड़प

अभी तो तड़प-तड़प के

दिन के उजालों से निकला हू…
.
न जाने रात के अँधेरे और कितना रुलायेंगे.

स्याही की भी

स्याही की भी मंज़िल का

अंदाज़ देखिये :
खुद-ब-खुद बिखरती है, तो दाग़ बनाती है,
जब कोई बिखेरता है, तो

अलफ़ाज़…बनाती है…!!