ज़िन्दगी में तन्हा हुँ तो क्या हुआ,
जनाजे में सारा शहर होगा देख लेना…
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काश की कहीं इश्क़ के
काश की कहीं इश्क़ के भी पकोड़े होते
हम भी शिद्दत की चटनी के चटोरे होते|
हम ज़माने से
हम ज़माने से इंतक़ाम तो ले
इक हँसी दरमियान है प्यारे
खुदा जाने यह किसका
खुदा जाने यह किसका
जलवा है दुनियां ए बस्ती में
हजारों चल बसे लेकिन,
वही रौनक है महफिल की।
हाँ ठीक है
हाँ ठीक है मैं अपनी अना का मरीज़ हूँ
आख़िर मेरे मिज़ाज में क्यूँ दख़्ल दे कोई
जब कोई अपना
जब कोई अपना मर जाता है ना साहिब…..!
फिर कब्रिस्तानों से डर नही लगता…
किसे याद किया करता हैं
धुप में कौन किसे याद किया करता हैं
पर तेरे शहर में बरसात तो होती होगी
हमारा तजरबा हमको
हमारा तजरबा हमको सबक़ ये भी सिखाता है
कि जो मक्खन लगाता है वो ही चूना लगाता है|
हिचकियों से एक बात का
हिचकियों से एक बात का पता चलता है कि कोई हमें याद तो करता है,
बात न करे तो क्या हुआ कोई आज भी हम पर कुछ लम्हें बरबाद तो करता है…
यूँ ही वो दे रहा है
यूँ ही वो दे रहा है क़त्ल कि धमकियाँ,
हम कौन सा ज़िंदा हैं जो मर जाएंगे…