इन होंठो की भी न जाने क्या मजबूरी होती है,
वही बात छुपाते है जो कहनी जरुरी होती है !!
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गुज़री तमाम उम्र
गुज़री तमाम उम्र उसी शहर में जहाँ…
वाक़िफ़ सभी थे कोई पहचानता न था..
बहुत शौक था
बहुत शौक था हमें सबको जोडकर रखने का
होश तब आया जब खुद के वजूद के टुकडे देखे..
अपने ही रंग से
अपने ही रंग से तस्वीर बनानी थी
मेरे अंदर से भी सभी रंग तुम्हारे निकले|
ज़िन्दगी जब चुप सी रहती है
ज़िन्दगी जब चुप सी रहती है
मेरे खामोश सवालो पर…
तब दिल की जुबाँ स्याही से
पन्नें सजाती है..!!
हजारो जबावों से
हजारो जबावों से अच्छी है मेरी खामोशी
ना जाने कितने सवालों की आबरू रखी ।
अब तो परिन्दे भी
अब तो परिन्दे भी इश्क करते है बिजली के तारो पर …
पेड़ की ड़ालियाँ अब कहाँ बची है मेरे शहर मे
जब तक ये दिल
जब तक ये दिल तेरी ज़द में है
तेरी यादें मेरी हद में हैं।
तुम हो मेरे केवल मेरे ही
हर एक लम्हा इस ही मद में है ।
है दिल को तेरी चाह आज भी
ये ख्वाब ख्वाहिश-ऐ- बर में है ।
मुहब्बत इवादत है खुदा की
और मुहोब्बत उसी रब में है।
हम भी वही होते हैं
हम भी वही होते हैं,
रिश्ते भी वही होते हैं,
और रास्ते भी वही होते हैं,
बदलता है तो बस…..
समय, एहसास, और नज़रिया…!!
ज़रा सी फैली स्याही है
ज़रा सी फैली स्याही है,ज़रा से बिख़रे हम भी हैं,
काग़ज़ पर थोड़े लफ़्ज़ भी है छुपे हुए कुछ ग़म भी हैं…