बेजुबाँ महफिल में शोर होने लगा,
ना जाने कौन पढ़ गया खामोशी मेरी !!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
बेजुबाँ महफिल में शोर होने लगा,
ना जाने कौन पढ़ गया खामोशी मेरी !!
हमको ख़ुशी मिल भी गई तो कहा रखेगे हम आँखों में हसरतें है तो दिल में किसी का गम|
खुबसूरत क्या कह दिया उनको, के वो हमको छोड़कर शीशे के हो गए
तराशा नहीं था तो पत्थर थे, तराश दिया तो खुदा हो गए|
उसकी जीत से होती हे ख़ुशी मुझको….!
यही जवाब मेरे पास अपनी हार का था …
न सब बेखबर हैं,न होशियार सब,
ग़रज़ के मुताबिक हैं,किरदार सब…
कभी उनकी क़द्र करके देखो…
जो आपको बिन मतलब प्यार करते हैं..!!
सोचा था तुझपे प्यार लुटाकर तेरे दिल में घर बनायेंगे…
हमे क्या पता था दिल देकर भी हम बेघर रह जाएँगे.…
मोहब्बत की तलाश मैं निकले हो तुम अरे ओ पागल…
मोहब्बत खुद तलाश करती है, जिसे बर्बाद करना हो…
अधूरे से रहते मेरे लफ्ज़ ………तेरे ज़िक्र के बिना…!
मानो जैसे मेरी हर शायरी की ……..रूह तूम ही हो…!!
तुम मुझे फरेब दो और मैं प्यार समझूं उसे
अब इतना सादगी का ज़माना नहीं रहा…