शीशे में डूब कर पीते रहे उस जाम को….
कोशिशें की बहुत मगर भुला न पाए एक नाम को……!!
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कहते है किस्मत
कहते है किस्मत ऊपर वाला लिखता है!
फिर उसे क्यों लाता है ज़िन्दगी में जो किस्मत में नही होता
ज़िन्दगी के मायने
ज़िन्दगी के मायने तो याद तुमको रह जायेंगे ,
अपनी कामयाबी में कुछ कमी भी रहने दो..
तुझे तो मिल गये
तुझे तो मिल गये जीवन मे कई नये साथी,
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लेकिन…..
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“मुझे हर मोड़ पऱ तेरी कमी अब भी महसूस होती
है….!!
जो दिल की गिरफ्त में
जो दिल की गिरफ्त में हो जाता है,
मासूक के रहमों-करम पर हो जाता है,
किसी और की बात रास नहीं आती,
दिल कुछ ऐसा कम्बख्त हो जाता है,
मानता है बस दलीले उनकी,
ये कुछ यूँ बद हवास हो जाता है,
यार के दीदार में ऐसा मशगूल रहता है,
कि अपनी खैरियत भूल कर भी सो जाता है,
खुदा की नमाज भी भूल कर बैठा है,
कुछ इस कदर बद्सलूक हो जाता है,
जब दिल की गिरफ्त मे हो कोई,
जाने क्या से क्या हो जाता है…
चुना था बाग से
चुना था बाग से सब से हसीं फूल समझ कर तुझे….
मालूम न था तेरा खरीदार कोई और होगा
उस तीर से
उस तीर से क्या शिकवा, जो सीने में चुभ गया,
लोग इधर हंसते हंसते, नज़रों से वार करते हैं।
गुज़री तमाम उम्र
गुज़री तमाम उम्र उसी शहर में जहाँ…
वाक़िफ़ सभी थे कोई पहचानता न था..
अनदेखे धागों में
अनदेखे धागों में, यूं बाँध गया कोई
की वो साथ भी नहीं, और हम आज़ाद भी नहीं.
तुझे ही फुरसत ना थी
तुझे ही फुरसत ना थी किसी अफ़साने को पढ़ने की,
मैं तो बिकता रहा तेरे शहर में किताबों की तरह..