उफ़ ये रोज़ रोज़ ख़ुद से बातें बगावत की उफ़ ये रोज़ रोज़ तुझ बिन रातें आमावस की|
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हर बार मैं
हर बार मैं ही गलत होता हूँ यह तेरी इक ग़लतफ़हमी है|
पा सकेंगे न उम्र भर
पा सकेंगे न उम्र भर जिस को जुस्तुजू आज भी उसी की है|
कैसे नादान है
कैसे नादान है हम लोग .. दुख आता है तो अटक जाते है । सुख आता है तो भटक जाते है ।
तमाम रात तेरे
तमाम रात तेरे मय-कदे में मय पी है, तमाम उम्र नशे में निकल न जाए कहीं…
ये सोचना ग़लत है
ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं, मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं।
आज पास हूँ
आज पास हूँ तो क़दर नहीं है तुमको, यक़ीन करो टूट जाओगे तुम मेरे चले जाने से|
मैंने कब तुम से
मैंने कब तुम से मुलाकात का वादा चाहा, मैंने दूर रहकर भी तुम्हे हद से ज्यादा चाहा|
लफ़्ज़ों में बयाँ करूँ
लफ़्ज़ों में बयाँ करूँ जो तुम्हे , इक लफ्ज़ मुहब्बत ही काफी है|
दौर वह आया है
दौर वह आया है, कि कातिल की सज़ा कोई नहीं , हर सज़ा उसके लिए है, जिसकी खता कोई नहीं|