इस कब्र में भी सुकूं की नींद नसीब नही हुई गालिब…
रोज फरिश्ते आकर कहते है आज कौई नया शेर सुनाओ|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
इस कब्र में भी सुकूं की नींद नसीब नही हुई गालिब…
रोज फरिश्ते आकर कहते है आज कौई नया शेर सुनाओ|
इक अजब चीज़ है शराफ़त भी
इस में शर भी है और आफ़त भी|
बस थोड़ी दूर है घर उनका,
कभी होता ना दीदार उनका ।
मेरी यादों में है बसर उनका,
इतफ़ाक या है असर उनका ।
सहर हुई है या है नूर उनका,
गहरी नींद या है सुरुर उनका ।
पूछे क्या नाम है हुज़ूर उनका,
हम पे यूँ सवार है गुरुर उनका ।
हर गिला-शिकवा मंजूर उनका ।
कभी मिल सको तो बेवजाह मिलना….,
वजह से मिलने वाले तो ना जाने हर रोज़ कितने मिलते है…!
बहुत बरसों तक वो कैद में रहने वाला परिंदा,
नहीं गया उड़कर जब कि सलाखें कट चुकी थी…
सज़ा ये दी है कि आँखों से छीन लीं नींदें,
क़ुसूर ये था कि जीने के ख़्वाब देखे थे…
हर एक इसी उम्मीद मे चल रहा है जी रहा है,
कुछ को उसुलो ने रोक रखा है कुछ को कुसूरो ने…
तुमको देखा तो मौहब्बत भी समझ आई,
वरना इस शब्द की तारीफ ही सुना करते थे..!!
मेरी महोब्बत के अपने ही उसुल है…
तुम करो न करो पर मुझे साँसो के टुटने तक रहेगी|
इस दुनिया में अजनबी बने रहना ही ठीक है..लोग बहुत तकलीफे देते है “अक्सर अपना बना कर” ।