इस कब्र में भी

इस कब्र में भी सुकूं की नींद नसीब नही हुई गालिब…

रोज फरिश्ते आकर कहते है आज कौई नया शेर सुनाओ|

बस थोड़ी दूर है

बस थोड़ी दूर है घर उनका,
कभी होता ना दीदार उनका ।
मेरी यादों में है बसर उनका,
इतफ़ाक या है असर उनका ।
सहर हुई है या है नूर उनका,
गहरी नींद या है सुरुर उनका ।
पूछे क्या नाम है हुज़ूर उनका,
हम पे यूँ सवार है गुरुर उनका ।
हर गिला-शिकवा मंजूर उनका ।