रंग बातें करें और बातों से ख़ुश्बू आए दर्द फूलों की तरह महके अगर तू आए|
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हमसे मत पूछिए
हमसे मत पूछिए जिंदगी के बारे में, अजनबी क्या जाने अजनबी के बारे में!
वफ़ा का ज़िक्र
वफ़ा का ज़िक्र छिड़ा था कि रात बीत गई, अभी तो रंग जमा था कि रात बीत गई…
मत तरसा किसी को
मत तरसा किसी को इतना अपनी मोहब्बत के लिए… क्या पता तेरी ही मोहब्बत पाने के लिए जी रहा हो कोई|
किसे खोज रहे तुम
किसे खोज रहे तुम इस गुमनाम सी रुह में. वो लफ़्जो में जीने वाला अब खामोशी में रहता है|
उसे छत पर
उसे छत पर खड़े देखा था मैं ने कि जिस के घर का दरवाज़ा नहीं है|
अब क्यों बेठे हो
अब क्यों बेठे हो मेरी कब्र बेवजह कह रहा था चले जाऊंगा तब एतबार न आया|
आज फिर शाख़ से
आज फिर शाख़ से गिरे पत्ते और मिट्टी में मिल गए पत्ते|
न शाख़ ने थामा
न शाख़ ने थामा, न हवाओं ने बक्शा, वो पत्ता आवारा ना फिरता तो क्या करता।
छा जाती है
छा जाती है खामोशी अगर गुनाह अपने हों..!! बात दूसरे की हो तो शोर बहुत होता है….!!