बिछड़कर फिर मिलेंगे यकीन कितना था…
बेशक ख्वाब ही था मगर.. हसीन कितना था…
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अलविदा कहते हुए
अलविदा कहते हुए जब मैंने
मांगी उससे कोई निशानी
वो मुस्कुरा के बोले मेरी जुदाई ही
काफ़ी हैं तुझे रुलाने के लिए..!!
तुम आ गए हो
तुम आ गए हो तो
अब आइना भी देखेंगे…
अभी अभी तो निगाहों में
रौशनी हुई है…!!!
हम अपने उसूलों से
हम अपने उसूलों से, डगमगाये तो थे ज़रूर;
पर आप भी मुस्करा कर, पलटे तो थे हुज़ूर!
देखा है क़यामत को
देखा है क़यामत को,मैंने जमीं पे
नज़रें भी हैं हमीं पे,परदा भी हमीं से|
कुछ कहने के लिए ….
कुछ कहने के लिए …..
बोलने की क्या जरुरत हे !!!!
जब भी मिलते हो
जब भी मिलते हो , रूठ जाते हो ,
यानी रिश्तों में , जान बाक़ी है |
वो एक ख़त
वो एक ख़त जो तूने कभी मुझे लिखा ही नहीं…?
देख मै हर रोज़ बैठ कर उसका जवाब लिखता हूँ….
हम भी मुस्कराते थे
हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अंदाज से ,
देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में..!!
शायरों की बस्ती में
शायरों की बस्ती में कदम रखा तो जाना ।
गमों की महफिल भी कितने खुशी से जमती है ।।