झुठी शान के परिंदे ही ज्यादा फड़फड़ाते हैं,
तरक्की के बाज़ की उडान में कभी आवाज़ नहीं होती।
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तमाम रिश्तों को
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया हूँ,
उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला|
उसे जो लिखना होता है
उसे जो लिखना होता है, वही वो लिख के रहती है,
क़लम को सर कलम होने का कोई डर नहीं होता।
उस ज़ुल्फ़ के फंदे
उस ज़ुल्फ़ के फंदे से निकलना नहीं मुमकिन,
हाँ माँग कोई राह निकाले तो निकाले|
पढ़ते क्या हो
पढ़ते क्या हो आंखों में मेरी कहानी….
मस्ती में मगन रहना तो आदत है मेरी
पुरानी…
अपने अहसासों को
अपने अहसासों को ख़ुद कुचला है मैंने,
क्योंकि बात तेरी हिफाज़त की थी.!
तुम्हारे जाने के बाद
तुम्हारे जाने के बाद सुकून से
सो नहीं पाया कभी.
मेरी करवटों में रेगिस्तान सा
खालीपन पसरा रहता है
जब तुम पास होते हो तो कोई
शिकायत नहीं होती किसी से भी.
यूं देखिए तो
यूं देखिए तो आंधी में बस इक शजर गया
लेकिन न जाने कितने परिंदों का घर गया.
जैसे ग़लत पते पे चला आए कोई शख़्स
सुख…ऐसे मेरे दर पे रुका…और गुज़र गया….!!!
यकीं नहीं है
यकीं नहीं है मगर आज भी ये लगता है
मेरी तलाश में शायद बहार आज भी है … ??
जो दूरियों में
जो दूरियों में भी कायम रहा..
….वो इश्क़ ही कुछ और था।