अनुभव कहता है…
खामोशियाँ ही बेहतर हैं,
शब्दों से लोग रूठते बहुत हैं
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
अनुभव कहता है…
खामोशियाँ ही बेहतर हैं,
शब्दों से लोग रूठते बहुत हैं
तू छोड़ दे कोशिशें..
इन्सानों को पहचानने की…!
यहाँ जरुरतों के हिसाब से ..
सब बदलते नकाब हैं…!
अपने गुनाहों
पर सौ पर्दे डालकर.
हर शख़्स कहता है-
” ज़माना बड़ा ख़राब है।”
जो आपके इंतज़ार में गुज़रती है,बहुत मसरुफ़ होने पर भी वो फ़ुरसत कम नही होती……
तेरी रूह का मेरी रूह से निकाह हो गया हैं जैसे…
तेरे सिवा किसी और का सोचूँ तो नाजायज़ सा लगता हैं….
हम जमाने की नज़र में थे यकीनन, तेरी नज़र से पेश्तर,
तेरी नज़र में जो आये, हो गए सुर्खरू पहले से भी बेहतर।
यही अंदाज़ है मेरा समन्दर फ़तह करने का
मेरी काग़ज़ की कश्ती में कई जुगनू भी होते है..
आसमां में मत दूंढ अपने सपनो को,
सपनो के लिए तो ज़मी जरूरी है..
सब कुछ मिल जाए तो जीने का क्या मज़ा,
जीने के लिये
तेरी मोहब्बत-ए-हयात को…
लिखु किस गजल के नाम से….ღ
ღ तेरा हुस्न भी जानलेवा…तेरी सादगी भी कमाल हैं…ღ
वह कितना मेहरबान था, कि हज़ारों गम दे गया…
हम कितने खुदगर्ज़ निकले, कुछ ना दे सके उसे प्यार के सिवा।
मेरी ख्वाइश थी कि मुझे तुम ही मिलते, मगर मेरी ख्वाइशों की इतनी औकात कहाँ…..