ऐ उम्र कुछ

ऐ उम्र कुछ कहा मैंने,

शायद तूने सुना नहीं….
तू छीन सकती है बचपन मेरा , बचपना नहीं…

अभी तो तड़प

अभी तो तड़प-तड़प के

दिन के उजालों से निकला हू…
.
न जाने रात के अँधेरे और कितना रुलायेंगे.

स्याही की भी

स्याही की भी मंज़िल का

अंदाज़ देखिये :
खुद-ब-खुद बिखरती है, तो दाग़ बनाती है,
जब कोई बिखेरता है, तो

अलफ़ाज़…बनाती है…!!

इस बनावटी दुनिया में

इस बनावटी दुनिया में

कुछ सीधा सच्चा रहने दो,
तन वयस्क हो जाए चाहे, दिल तो बच्चा रहने दो,
नियम कायदो

की भट्टी में पकी तो जल्दी चटकेगी,
मन की मिट्टी को थोडा सा तो गीला, कच्चा रहने दो|

उमर बीत गई

उमर बीत गई पर एक

जरा सी बात समझ में
नहीं आई…!!
हो जाए जिनसे मोहब्बत,वो लोग कदर
क्युँ नहीं करते…..!