अजब हाल है
आदमी की शख्शियत का,..
हवस खुद की उठती है
तवायफ उसको कहता है…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
अजब हाल है
आदमी की शख्शियत का,..
हवस खुद की उठती है
तवायफ उसको कहता है…
ज़मीं पर वो मेरा नाम लिखते है और मिटाते है…
उनका तो टाइम पास हो जाता है
कमबख्त मिटटी में हम मिल जाते है
जलती हुई cigarate को देख कर ज़ालिम ने फ़रमाया , दिल को जलाती हे पर होठो तक तो आती हे….
ख्वाइश बस इतनी सी है की तुम मेरे लफ़्ज़ों को समझो…. आरज़ू ये नही की लोग वाह वाह करें..
मोहब्बत भी अजीब चीज बनायीं खुदा तूने,तेरे ही मंदिर में, तेरी ही मस्जिद में, तेरे ही बंदे, तेरे ही सामने रोते हैं, तुझे नहीं,किसी और को पाने के लिए!
उसकी आँखों में नज़र आता है सारा जहां मुझ को; अफ़सोस कि उन आँखों में कभी खुद को नहीं देखा।
बेक़सूर कौन होता हैं इस ज़माने में
बस सबके गुनाह पता नहीं चलते।।
I want to go to sleep at night, wake up every day,
and breathe knowing you are truly mine…
सबकी अपनी अपनी कहानी होती है, किसी की पूरी तो किसी की अधूरी होती है ।
…
…
मेरी अधूरी है ।
सर झुकाने से नमाज़ें अदा नहीं होती,
दिल झुकाना पड़ता है इबादत के लिए..