ज़िन्दगी के पेंच

आज़माइश की मुसलसल चोट से
ज़िन्दगी के पेंच ढीले हो गये
पीते-पीते सब्र की कड़वी दवा
ख़्वाहिशों के जिस्म नीले हो गये|

लफ़्ज़ों पे वज़न

लफ़्ज़ों पे वज़न रखने से नहीं झुकते मोहब्बत के पलड़े साहिब

हलके से इशारे पे ही,

ज़िंदगियां क़ुर्बान हो जाती हैं