मुक्कम्मल ज़िन्दगी तो है,
मगर पूरी से कुछ कम है।
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अख़बार का भी
अख़बार का भी अजीब खेल है,
सुबह अमीरों की चाय का मजा बढाती है,
रात में गरीबों के खाने की थाली बन जाती है।
ज़िन्दगी को समझने में
ज़िन्दगी को समझने में वक़्त न गुज़ार,
थोड़ी जी ले पूरी समझ में आ जायेगी।
मैं ख्वाहिश बन जाऊँ
मैं ख्वाहिश बन जाऊँ और तू रूह की तलब
बस यूँ ही जी लेंगे दोनों मोहब्बत बनकर.
जहाँ कुछ दर्द
जहाँ कुछ दर्द का मज़कूर होगा…
हमारा शेर भी मशहूर होगा..
कभी यूँ भी
कभी यूँ भी तो हो,, परियों की महफ़िल हो
कोई तुम्हारी बात हो और तुम आओ
उम्मीदों के ताले
उम्मीदों के ताले पड़े के पड़े रह गए,
तिज़ोरी उम्र की, ना जाने कब ख़ाली हो गई !!
संदेशा प्रेम का
संदेशा प्रेम का देता फिरता है वो
घर दिलों में सभी के ही बना देता है!
इतनी चाहत से
इतनी चाहत से न देखो भरी महफ़िल में मुझे
वो हरेक बात का अफसाना बना देता है!
मुश्किलें आयीं मगर
मुश्किलें आयीं मगर लौट गयीं उलटे पाँव
कोई ऐसा भी है जो मुझको दुआ देता है!