ये मत सोचो

ये मत सोचो तुम छोङ दोगे तो हम मर जायेँगे ,

वो भी जी रहे है जिनको तेरी खातिर हमने छोङा था .

लोग कहते हैं

लोग कहते हैं कि समझो तो खामोशियां भी बोलती हैं,

मैं अरसे से खामोश हूं और वो बरसों से बेखबर है…

सिखा दिया

सिखा दिया ‘तुने’ मुझे… अपनों पर भी ‘शक’ करना..
मेरी ‘फितरत’ में तो था… गैरों पर भी ‘भरोसा’ करना!!

सुबह से संदेशे

सुबह से संदेशे तो बहुत आये लेकिन मेहमान कोई नही आया. सोचता हूँ ड्राइंग रूम से सोफा हटा दूं. या ड्राइंग रूम का कांसेप्ट बदलकर वहां स्टडी रूम बना दूं.
दो दिन से व्हाट्स एप और एफबी के मेसेंजर पर मेसेज खोलते, स्क्रॉल करते और फिर जवाब के लिए टाइप करते करते दाहिने हाथ के अंगूठे में दर्द होने लगा है. संदेशें आते जा रहे हैं. बधाईयों का तांता है . लेकिन मेहमान नदारद है .
ये है आज के दौर की दीवाली.
मित्रों, घर के आसपास के पडौसी अगर छोड़ दें तो त्यौहार पर मिलने जुलने का रिवाज़ खत्म हो चला है. पैसे वाले दोस्त और अमीर किस्म के रिश्तेदार मिठाई या गिफ्ट तो भिजवाते है लेकिन घर पर बेल ड्राईवर बजाता है. वो खुद नही आते.
दरअसल घर अब घर नही रहा. ऑफिस के वर्क स्टेशन की तरह घर एक स्लीप स्टेशन है. हर दिन का एक रिटायरिंग बेस. आराम करिए, फ्रेश हो जाईये. घर अब सिर्फ घरवालों का है. घर का समाज से कोई संपर्क नही है. मेट्रो युग में समाज और घर के बीच तार शायद टूट चुके हैं. हमे स्वीकार करना होगा कि ये बचपन वाला घर नही रहा. अब घर और समाज के बीच में एक बड़ा फासला सा है.
वैसे भी शादी अब मेरिज हाल में होती है. बर्थडे मैक डोनाल्ड या पिज़्ज़ा हट में मनाया जाता है. बीमारी में नर्सिंग होम में खैरियत पूछी जाती है. और अंतिम आयोजन के लिए सीधे लोग घाट पहुँच जाते है.
सच तो ये है कि जब से डेबिट कार्ड और एटीएम आ गये है तब से मेहमान क्या …चोर भी घर नही आते.
मे सोचता हूँ कि चोर आया तो क्या ले जायेगा…फ्रिज, सोफा, पलंग, लैप टॉप..टीवी…कितने में बेचेगा इन्हें चोर? अरे री सेल तो olx ने चौपट कर दी है. चोर को बचेगा क्या ? वैसे भी अब कैश तो एटीएम में है इसीलिए होम डेलिवरी वाला भी पिज़ा के साथ डेबिट मशीन साथ लाता है.

सच तो ये है कि अब सवाल सिर्फ घर के आर्किटेक्ट को लेकर ही बचा है.
जी हाँ….क्या घर के नक़्शे से ड्राइंग रूम का कांसेप्ट खत्म कर देना चाहिये ?