लफ़्ज़ों को यूं कम ना आंकिये,
चंद जो इक्कठे हो जाएँ तो शेर हो जाते हैं।
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उम्र ढ़लते देर कहाँ लगती है..
उम्र ढ़लते देर कहाँ लगती है..,
साल भी देखो चार दिन पुराना हो गया !
शाम का वक्त
शाम का वक्त हो और ‘शराब’ ना हो…!
इंसान का वक्त इतना भी ‘खराब’ ना हो…!!
खुशबू बता रही है
खुशबू बता रही है,,,,, वो शख्स
दरवाजे तलक आया था
ये ख्वाब है
ये ख्वाब है, खुश्बू है, के झोंका है के तुम हो…!
ये धुंध है, बादल है, के साया है, के तुम हो …
तू चाहे कितनी भी
तू चाहे कितनी भी तकलीफ दे दे….!!!
सुकुन भी सिर्फ उसी के पास ही मिलता है…!!
तेरी शब मेरे
तेरी शब मेरे नाम हो जाये
नींद मुझ पर हराम हो जाये
लौट आता है घर परिन्दा भी
इससे पहले कि शाम हो जाये
मेरी हर बात का
मेरी हर बात का जवाब रखते हो तुम
क्या साथ में कोई किताब रखते हो तुम
मैं बंद आंखों से
मैं बंद आंखों से उसको देखता हूं
हमारे बीच में पर्दा नहीं है|
ये सोच कर
ये सोच कर की शायद वो खिड़की से झाँक ले..