बता किस कोने में, सुखाऊँ तेरी यादें,
बरसात बाहर भी है, और भीतर भी है..
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वो जो अँधेरो में
वो जो अँधेरो में भी नज़र आए
ऐसा साया बनो किसी का तुम|
इंतहा आज इश्क़ की
इंतहा आज इश्क़ की कर दी
आपके नाम ज़िन्दगी कर दी
था अँधेरा ग़रीब ख़ाने में
आपने आ के रौशनी कर दी
देने वाले ने उनको हुस्न दिया
और अता मुझको आशिक़ी कर दी
तुमने ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे बिखरा कर
शाम रंगीन और भी कर दी|
कितने संगदिल हैं
कितने संगदिल हैं वो, मुझे बेज़ार रुलाने वाले…
देखो चैन से सो रहे हैं मुझे उम्र भर जगाने वाले…
काम आ सकीं
काम आ सकीं न अपनी वफ़ाएँ तो क्या करें
उस बेवफ़ा को भूल न जाएँ तो क्या करें
चल पडी है
चल पडी है मेरी दुआए असर करने को….
तुम बस मेरे होने की तैयारी कर लो…!!
कितना आसाँ था
कितना आसाँ था तेरे हिज्र में मरना जानाँ फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते|
गुमान न कर
गुमान न कर अपनी खुशनसीबी का..
नशीबी मे होगा तो तुझे भी इश्क होगा..
ना जाने कितनी बार
ना जाने कितनी बार अनचाहे किया है सौदा सच का,
कभी जरुरत हालात की थी और कभी तकाज़ा वक़्त का|
मिठास रिश्तों में
मिठास रिश्तों में बढ़ाएं तो कोई बात बने…
मिठाईयां तो हर साल मीठी ही बनती है…