कभी यूँ भी हुआ है हंसते-हंसते तोड़ दी हमने…
हमें मालूम नहीं था जुड़ती नहीं टूटी हुई चीज़ें..!!
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वो रूह में
वो रूह में उतर जाये तो पा ले मुझको
इश्क़ के सौदे मैं जिस्म नहीं तौले जाते|
सजा यह मिली की
सजा यह मिली की आँखों से नींदें छीन ली उसने,
जुर्म यह था कि उसके साथ रहने का ख्वाब देखा था|
मत हो उदास
मत हो उदास इतना किसी के लिए….. .ए दिल
किसी के लिए जान भी दे देगा तो लोग
कहेंगे इसकी उम्र ही
इतनी थी|
दीवार पर लिख गये..
बच्चे मेरे गली के बहुत ही शरारती हैं,
आज फिर तुम्हारा नाम मेरी दीवार पर लिख गये..
एक मुद्दत से
एक मुद्दत से तुम निगाहों में समाए हो…!
एक मुद्दत से हम होंश में नहीं हैं ..!!
लगने दो आज महफिल ….
लगने दो आज महफिल ….
शायरी कि जुँबा में बहते है ..
तुम ऊठा लो किताब गालिब कि ….
हम अपना हाल ए दिल कहते है …
तू वैसी ही है
तू वैसी ही है जैसा मैं चाहता हूँ…
बस..
मुझे वैसा बना दे जैसा तू चाहती है….
हँसी यूँ ही
हँसी यूँ ही नहीं आई है इस ख़ामोश चेहरे पर…..कई ज़ख्मों को सीने में दबाकर रख दिया हमने !
मांग इतना खून मेरे
मांग इतना खून मेरे ज़ख़्मी ‘दिल से,
की बूँद भी न रहे तेरे सिंदूर के लिए..!!