तुम रख ही ना सकीं मेरा तोफहा सम्भालकर
मैंने दी थी तुम्हे,जिस्म से रूह निकालकर|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
तुम रख ही ना सकीं मेरा तोफहा सम्भालकर
मैंने दी थी तुम्हे,जिस्म से रूह निकालकर|
जब से पड़ा है तेरी निगाहों से वास्ता,
नींद नहीं आती मुझे सितारों से पूँछ लो!
मेरी नाराज़गी तुमसे नहीं, तुम्हारे वक्त से है|
सूखने लगी है….स्याही शायद,ज़ख़्मों की दवात में… वरना वो भी दिन थे,दर्द रिसता था धीरे-धीरे !
उसका वादा भी अजीब था..कि जिन्दगी भर साथ निभायेंगे,मैंने भी ये नहीं पुछा कीमोहब्बत के साथ या यादों के साथ..!!
अब सहारों की बात मत करना….…
अब दिलासों से भर गया है दिल….!!
बहुत करीब से अंजान बन केगुज़री है…!
वो जो बहुत दूर से पहचान लिया करती थी….!!
इस हुनर से बच पाओ तो हुनर है,
बडा आसान है शायरोँ मेँ शायर हो जाना…
अभी तक तो मोहब्बत है,इसीलिए फर्क पड़ता है,
वक्त ने चाहा, तो तुमसे नफरत करना भी छोड़ दुंगा…!
बदन की क़ैद से बाहर, ठिकाना चाहता है;
अजीब दिल है, कहीं और जाना चाहता है!