निर्धन दिल का है

निर्धन दिल का है धनी, और धनी है दीन।
निर्धन दिल से साफ़ है, और धनी है हीन।।

कोई किसका दास है, कोई किसका दास।
मन फ़क़ीरी खिल्ल उठे, होवे कभी उदास।।

देह काम करता नहीं, बुद्धि न देती साथ।
जब भी मुँह खोलूँ सदा, निकले उलटी बात।।

कौन कहता है

कौन कहता है दुनिया में
हमशक्ल नहीं होते

देख कितना मिलता है
तेरा “दिल” मेरे “दिल’ से.!