दो घडी जिक्र जो तेरा न हुआ….
दो घडी हम पे कयामत गुज़री|
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रोते-रोते थक कर
रोते-रोते थक कर जैसे कोई बच्चा सो जाता है….
सुनो,
हाल हमारे दिल का अक्सर कुछ ऐसा ही हो
जाता है|
दुश्मनों के साथ
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद है,
देखना है , फेंकता है मुझ पर पहला तीर कौन……
बड़ी अजीब सी है
बड़ी अजीब सी है शहरों की रौशनी,
उजालों के बावजूद चेहरे पहचानना मुश्किल है।
हम ने तो वफ़ा के
हम ने तो वफ़ा के लफ़्ज़ को भी वजू
के साथ छूआ जाते वक़्त उस ज़ालिम को
इतना भी ख़याल न हुआ |
उनको मेरी आँखें पसंद है
उनको मेरी आँखें पसंद है,
और मुझे खुद कि आँखों में वो|
लोग कहते हैं
लोग कहते हैं कि समझो तो खामोशियां भी बोलती हैं,
मैं अरसे से खामोश हूं और वो बरसों से बेखबर….
खामोश रहने दो
खामोश रहने दो लफ़्ज़ों को, आँखों को बयाँ करने दो हकीकत,
अश्क जब निकलेंगे झील के, मुक़द्दर से जल जायेंगे अफसाने..
चिँगारियोँ को हवा दे
चिँगारियोँ को हवा दे कर हम दामन नहीँ जलाते,
बुलंद इरादे हमारे पूरे शहर मेँ आग लगाते हैँ..
शायरी उसी के
शायरी उसी के लबों पर सजती है साहिब..
जिसकी आँखों में इश्क़ रोता हो..