आज ज़ाम मैंने

आज ज़ाम मैंने शौक से उडेल दी बेसिन में,
कसूर ये था कि एक अश्क गिरा था उसमें,
डर ये था कि कहीं ज़हर ना पी जाऊँ…

बात ऊँची थी

बात ऊँची थी मगर बात ज़रा कम आँकी
उस ने जज़्बात की औक़ात ज़रा कम आँकी
वो फरिश्ता मुझे कह कर ज़लील करता रहा
मैं हूँ इन्सान, मेरी ज़ात ज़रा कम आँकी