ज़ुल्फ़ के साए में एक झुमका छुपा है,
उसकी तस्वीर में रात और चाँद दोनों क़ैद हैं|
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चलो अब शाम हुई
चलो अब शाम हुई हम घर को चलते हैं,
पंछियों का देर तक आवारा घूमना अच्छा नहीं होता…
आज ज़ाम मैंने
आज ज़ाम मैंने शौक से उडेल दी बेसिन में,
कसूर ये था कि एक अश्क गिरा था उसमें,
डर ये था कि कहीं ज़हर ना पी जाऊँ…
अब तो मुझ को
अब तो मुझ को मेरे हाल में जीने दो
अब तो मैंने तुम पे मरना छोड़ दिया|
बात ऊँची थी
बात ऊँची थी मगर बात ज़रा कम आँकी
उस ने जज़्बात की औक़ात ज़रा कम आँकी
वो फरिश्ता मुझे कह कर ज़लील करता रहा
मैं हूँ इन्सान, मेरी ज़ात ज़रा कम आँकी
उलझते-सुलझते हुए
उलझते-सुलझते हुए ज़िन्दगी के ये लम्हें……
और खुशबू बिखेरता हुआ …तेरा महकता सा ख़्याल|
मय को मेरे सुरूर से
मय को मेरे सुरूर से हासिल सुरूर था,
मैं था नशे में चूर नशा मुझ में चूर था…
इश्क़ की दुनिया में
इश्क़ की दुनिया में क्या क्या हम को सौग़ातें मिलीं,
सूनी सुब्हें रोती शामें जागती रातें मिली…
दिल में अब कुछ भी नहीं
दिल में अब कुछ भी नहीं उन की मोहब्बत के सिवा,
सब फ़साने है हक़ीक़त में हक़ीक़त के सिवा ।।
आसु निकला है
आसु निकला है कोई हाथ में पत्थर लेकर
मुझ से कहता है,तेरा जब्त कर सर फोड़ूँगा