दो लफ्ज़ उनको सुनाने के लिए,
हज़ारों लफ्ज़ लिखे ज़माने के लिए |
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
दो लफ्ज़ उनको सुनाने के लिए,
हज़ारों लफ्ज़ लिखे ज़माने के लिए |
ना जाने क्यों रेत की तरह निकल जाते है हाथों से वो लोग,
जिन्हें जिन्दगी समझ कर हम कभी खोना नही चाहते…..!!!!!
सितम पर सितम कर रहे है मुझ पर,
वो मुझे शायद
अपना समझने लगे हैं|
हमारे दिल में भी झांको अगर मिले फुरसत…
हम अपने चेहरे से इतने
नज़र नहीं आते|
खुद से भी मिल न सको, इतने पास मत होना
इश्क़ तो करना, मगर देवदास मत होना…!
उसके होने भर से, होती है रोशनी…
माँ साथ है तो, हर रोज़ ईद
और दिवाली है|
ये है ज़िन्दगी, किसी के घर आज नई कार आई,
और किसी के घर मां की दवाई उधार आई..
न जाने किस हुनर को शायरी कहते होगेँ लोग…
हम तो वो लिख़ रहे हैँ जो कह ना सके उससे…
रात गुज़र जाती है तेरी यादों में अक्सर,
सुबह मसरूफ हो जाते हैं फिर से तुझे भुलाने में!
इश्क के समुन्दर मे वही उतरे,
जिसे किश्तों में मरने की सज़ा मंजूर हो…