बडे अजीब लोग हमने देखे चलते-फिरते यहाँ
खुद की जीत के लिए औरों को बदनाम करते सब यहाँ !!
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वक़्त ही कुछ
वक़्त ही कुछ ऐसा आ ठहरा है अब…
यादें ही नहीं होतीं याद करने के लिए…
तेरे बगैर भी
तेरे बगैर भी कहती है मुझे जीने को ये
जिदंगी भी सही मशविरा नही देती।
पता नहीं क्यूँ
पता नहीं क्यूँ कभी कभी लगता है,
बचपन के दिन सिर्फ पचपन ही थे !!
इस कब्र में भी
इस कब्र में भी सुकूं की नींद नसीब नही हुई गालिब…
रोज फरिश्ते आकर कहते है आज कौई नया शेर सुनाओ|
इक अजब चीज़ है
इक अजब चीज़ है शराफ़त भी
इस में शर भी है और आफ़त भी|
बस थोड़ी दूर है
बस थोड़ी दूर है घर उनका,
कभी होता ना दीदार उनका ।
मेरी यादों में है बसर उनका,
इतफ़ाक या है असर उनका ।
सहर हुई है या है नूर उनका,
गहरी नींद या है सुरुर उनका ।
पूछे क्या नाम है हुज़ूर उनका,
हम पे यूँ सवार है गुरुर उनका ।
हर गिला-शिकवा मंजूर उनका ।
बहुत बरसों तक
बहुत बरसों तक वो कैद में रहने वाला परिंदा,
नहीं गया उड़कर जब कि सलाखें कट चुकी थी…
सज़ा ये दी है
सज़ा ये दी है कि आँखों से छीन लीं नींदें,
क़ुसूर ये था कि जीने के ख़्वाब देखे थे…
हर एक इसी उम्मीद मे
हर एक इसी उम्मीद मे चल रहा है जी रहा है,
कुछ को उसुलो ने रोक रखा है कुछ को कुसूरो ने…