झुठी शान के परिंदे ही ज्यादा फड़फड़ाते हैं,
तरक्की के बाज़ की उडान में कभी आवाज़ नहीं होती।
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तमाम रिश्तों को
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया हूँ,
उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला|
पढ़ते क्या हो
पढ़ते क्या हो आंखों में मेरी कहानी….
मस्ती में मगन रहना तो आदत है मेरी
पुरानी…
अपने अहसासों को
अपने अहसासों को ख़ुद कुचला है मैंने,
क्योंकि बात तेरी हिफाज़त की थी.!
यकीं नहीं है
यकीं नहीं है मगर आज भी ये लगता है
मेरी तलाश में शायद बहार आज भी है … ??
कुछ कहने के लिए ….
कुछ कहने के लिए …..
बोलने की क्या जरुरत हे !!!!
वो एक ख़त
वो एक ख़त जो तूने कभी मुझे लिखा ही नहीं…?
देख मै हर रोज़ बैठ कर उसका जवाब लिखता हूँ….
हम भी मुस्कराते थे
हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अंदाज से ,
देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में..!!
आज फिर रात
आज फिर रात बड़ी नम सी है
आज तुम याद फिर बहुत आए|
तेरी तरफ जो
तेरी तरफ जो नजर उठी
वो तापिशे हुस्न से जल गयी
तुझे देख सकता नहीं कोई
तेरा हुस्न खुद ही नकाब हैं|