कागज़ की कतरनों को भी कहते हैं लोग फूल
रंगों का एतबार है क्या सूंघ के भी देख|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कागज़ की कतरनों को भी कहते हैं लोग फूल
रंगों का एतबार है क्या सूंघ के भी देख|
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती|
जान जब प्यारी थी, तब दुश्मन हज़ारों थे,
अब मरने का शौक है, तो क़ातिल नहीं मिलते।
हज़ार महफ़िलें हो, लाख मेले हो,
जब तक खुद से ना मिलो, अकेले ही हो।
बिना देखे इतना चाहते हैं आपको,
बिना मिले सब समझते हैं आपको,
ये आँखें जब भी बंद रहें हमारी,
बंद आँखों से देख लेते हैं आपको.
आँखों की दहलीज़ पे आके सपना बोला आंसू से…
घर तो आखिर घर होता है…
तुम रह लो या मैं रह लूँ….
कोशिश तो बहुत करता है तू की भूल जाए उसे.
मगर मुमकिन कहाँ है कि आग लगे और धुंवा ना हो..
आज तबियत कुछ नासाज़ सी लग रही है लगता है किसी की दुआओ का असर हो रहा है|
अकड़ती जा रही हैं हर रोज गर्दन की नसें, आज तक नहीं आया हुनर सर झुकाने का ..
कुछ तो है जो बदल गया जिन्दगी में मेरी
अब आइने में चेहरा मेरा हँसता हुआ नज़र नहीं आता…