सारा दर्द मुझे ही सौंप दिया…
उसे मुझपे ऐतबार बहुत था…!!!
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तेरे ही किस्से
तेरे ही किस्से…तेरी ही कहानियाँ मिलेंगी मुझमें…,
मैं कोई अख़बार नहीं…जो रोज़ बदल जाऊं…।
कुछ लोग आए थे मेरा दुख बाँटने
कुछ लोग आए थे मेरा दुख बाँटने,
मैं जब खुश हुआ तो खफा होकर चल दिये…!!!
किसके लिए
“जीत” किसके लिए,
‘हार’ किसके लिए,
‘ज़िंदगी भर’ ये ‘तकरार’ किसके लिए..
जो भी ‘आया’ है वो ‘जायेगा’ एक दिन यहाँ से ,
फिर ये इंसान को इतना “अहंकार” किसके लिए..
उसे मुझसे मोहब्बत नही तो ना सही
उसे मुझसे मोहब्बत नही तो ना सही…
क्या इतनी सी बात पर मै उसको चाहना छोड दूँ…!
न जाने कब खर्च हो गये वो लम्हें
न जाने कब खर्च हो गये वो लम्हें….
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जो छुपाकर रखे थे जीने के लिए…..!!
हमारी अधूरी कहानी
सोचने लगा हू बना लू अपनी एक कहानी,
पर डर लगता है कि कही रह ना जाए
“हमारी अधूरी कहानी”
दर्द की कीमत क्या है
किसी ने यूँ ही पूछ लिया हमसे कि दर्द की कीमत क्या है;
हमने हँसते हुए कहा,
“पता नहीं… कुछ अपने मुफ्त में दे जाते हैं।”
पलकों तले भी अक्सर धड़कन महसूस
पलकों तले भी अक्सर धड़कन महसूस होती है,
जब चूमा एक जोड़ी होठों ने तो अहसास हुआ..
यदि दोस्त ना होते
यदि दोस्त ना होते
एक पल के लिये सोचो कि यदि दोस्त ना होते तो क्या हम ये कर पाते
नर्सरी में गुम हुये पानी की बॉटल का ढक्कन कैसे ढूंढ पाते..
LKG में A B C D लिख कर होशियारी किसे दिखाते..
UKG में आकर हम किसकी पेन्सिल छुपाते..
पहली में बटन वाला पेन्सिल बॉक्स किसेदिखाते..
दूसरी में गिर जाने पर किसका हाथ सामने पाते..
तीसरी में absent होने पर कॉपी किसकी लाते..
चौथी में दूसरे से लड़ने पर डांट किसकी खाते..
पांचवी में फिर हम अपना लंच किसे चखाते..
छठी में टीचर की पिटाई पर हम किसे चिढाते..
सातवीं में खेल में किसे हराते / किससे हारते..
आठवीं में बेस्ट फ्रेंड कहकर किससे मिलवाते..
नवमीं में बीजगणित के सवाल किससे हल करवाते..
दसवीं में बॉयलाजी के स्केचेज़ किससे बनवाते..
ग्यारहवीं में “अपनीवाली” के बारे में किसे बताते..
बारहवीं में बाहर जाने पर आंसू किसके कंधे पर बहाते..
मोबाइल नं. से लेकर “उसकेभाई कितने हैं” कैसे जान पाते..
मम्मी, पापा,दीदी या भैय्या की कमी कैसे सहपाते..
हर रोज कॉपी या पेन भूल कर कॉलेज कैसे जाते..
“अबे बता” परीक्षा में ऐसी आवाज किसे लगाते..
जन्मदिनों पर केक क्या हम खुद ही अपने चेहरे पर लगाते..
कॉलेज बंक कर पिक्चर किसके साथ जाते..
“उसके” घर के चक्कर किसके साथ लगाते..
बहनों की डोलियां हम किसके कंधों के भरोसे उठाते.
ऐसी ही अनगिनत यादों को हम कैसे जोड़ पाते
बिना दोस्तों के हम सांस तो लेते पर,
शायद जिन्दगी ना जी पाते ।