कुछ इस तरह

कुछ इस तरह से हमने पूरी क़िताब पढ़ ली….
ख़ामोश बैठी रही ज़िंदगी…चाहतों ने पन्ने पलट दिए….

पहली शर्त है

मुस्कुराओ….

क्योंकि यह मनुष्य होने की पहली शर्त है।

एक पशु कभी भी नहीं मुस्कुरा सकता।

क्रोध में दिया

मुस्कुराओ…..

क्योंकि क्रोध में दिया गया आशीर्वाद भी बुरा लगता है

और मुस्कुराकर कहे गए बुरे शब्द भी अच्छे लगते हैं।

ऐसा नहीं कि

ऐसा नहीं कि कहने को कुछ नहीं बाकी,
मैं बस देख रहा हूँ क्या ख़ामोशी भी समझते हैं सुनने वाले…!

बातों को स्वीकार

हे भगवान,

मुझे उन बातों को स्वीकार करने का धैर्य प्रदान करो जिन्हें मैं बदल नहीं सकता हूं;
जिन चीजों को मैं बदल सकता हूं उनको बदलने का साहस दो
तथा इन दोनों में अंतर करने के लिए बुद्धि प्रदान करो।