तेरे हर ग़म को अपनी रूह में उतार लूँ;
ज़िन्दगी अपनी तेरी चाहत में संवार लूँ;
मुलाक़ात हो तुझसे कुछ इस तरह मेरी;
सारी उम्र बस एक मुलाक़ात में गुज़ार लूँ।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
तेरे हर ग़म को अपनी रूह में उतार लूँ;
ज़िन्दगी अपनी तेरी चाहत में संवार लूँ;
मुलाक़ात हो तुझसे कुछ इस तरह मेरी;
सारी उम्र बस एक मुलाक़ात में गुज़ार लूँ।
दुनिया भी कितनी अजीब जगह है;
जब चलना नही आता था, तब कोई गिरने नही देता था;
और जबसे चलना सिखा है, कदम कदम पर लोग गिराना चाहते है!
जो कभी किया ना असर शराब ने,
वो तेरी आँखों वे कर दिया,
सजा़ देना तो मेरी मुठ्ठी मे थी,
मुझे हि कैद तेरी सलाखों ने कर दिया ..
जीनेकी कुछ तो वजह होनी चाहिए…..वादे ना सही.. यादे तो होनी चाहिए…….!!
आ थक के कभी और, पास मेरे बैठ तू हमदम
. . . तू खुद को मुसाफ़िर, मुझे दीवार समझ ले ।
मत दिखाओ हमें, तुम ये मुहब्बत का बहीखाता ,
हिसाब-ए-इश्क़ रखना, हम दीवानों को नहीं आता ….
कितनी है कातिल ज़िंदगी की ये आरज़ू,
मर जाते हैं किसी पे लोग जीने के लिये।
कीसीने युंही पुछ लिया की दर्दकी किमत क्या है?
हमने हंसते हुए कहा, पता कुछ अपने मुफ्त में दे जाते है।
अक्ल बारीक हुई जाती है,
रूह तारीक हुई जाती है।
फासले इस कदर आज है रिश्तों में,
जैसे कोई क़र्ज़ चुका रहा हो किश्तों में