वों आजाद जुल्फें छू रहीं उनके लबों को…
और हम खफा हो बैठे हवाओं से..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
वों आजाद जुल्फें छू रहीं उनके लबों को…
और हम खफा हो बैठे हवाओं से..
दुनिया से बेखबर
चल कही दूर निकल जाये
मेरी मुलाक़ात तुझसे अब तक अधूरी है,
तू पास ही है मेरे, फिर क्यों ये दूरी है….
शीशा रहे बगल में, जामे शराब लब पर,
साकी यही जाम है, दो दिन की जिंदगानी का…
वो देखें इधर तो उनकी इनायत, ना देखें तो रोना क्या,
जो दिल गैर का हो, उसका होना क्या, ना होना क्या…
अब तो अपनी परछाईं भी ये कहने लगी है ,
मैं तेरा साथ दूँगी सिर्फ उजालों में !!
अधूरेपन का मसला ज़िंदगी भर हल नहीं होता…
कहीं आँखें नहीं होतीं, कहीं काजल नहीं होता…
ग़म मिलते हैं तो और निखरती है शायरी…
ये बात है तो सारे ज़माने का शुक्रिया…
वो दास्तान मुकम्मल करे तो अच्छा है
मुझे मिला है ज़रा सा सिरा कहानी का..
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले…..
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता…!!