उस हुस्न के सच्चे मोती को हम देख सके पर छु न सकें…
जिसे देख सके पर छु न सके वह दौलत क्या वह खज़ाना क्या…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
उस हुस्न के सच्चे मोती को हम देख सके पर छु न सकें…
जिसे देख सके पर छु न सके वह दौलत क्या वह खज़ाना क्या…
सोच में सारे परिन्दे सब के सब ख़ामोश हैं !
एक परिन्दा शाख़ पर जब शाम तक लौटा नहीं !!
चलो अब शाम हुई हम घर को चलते हैं,
पंछियों का देर तक आवारा घूमना अच्छा नहीं होता…
आज ज़ाम मैंने शौक से उडेल दी बेसिन में,
कसूर ये था कि एक अश्क गिरा था उसमें,
डर ये था कि कहीं ज़हर ना पी जाऊँ…
अजीब ईत्तेफाक की हमें इश्क हो गया,
जिन्दगी अब सितम जाने और क्या देगी…
एक यह बात हमको नागवार सी लगी,
वो दिल का किराएदार कभी मालिक नहीं बना…
मैख़ाने की बात उठी और शाकी को छोड दें,
ये क्या बात करते हो साहिब,कुछ तो ईमान रखो…
सुना था उसे बेवजह रोने की आदत थी,
मैं वजह पूछता रहा…वो रोती चली गयी…
आते हैं मैख़ाने में तो कलम टूट कर लिखती है,
मुझ से बडी काफिर तो मेरी कलम हो रक्खी है…
अब तो मुझ को मेरे हाल में जीने दो
अब तो मैंने तुम पे मरना छोड़ दिया|