गुज़री तमाम उम्र उसी शहर में जहाँ…
वाक़िफ़ सभी थे कोई पहचानता न था..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
गुज़री तमाम उम्र उसी शहर में जहाँ…
वाक़िफ़ सभी थे कोई पहचानता न था..
बहुत शौक था हमें सबको जोडकर रखने का
होश तब आया जब खुद के वजूद के टुकडे देखे..
अपने ही रंग से तस्वीर बनानी थी
मेरे अंदर से भी सभी रंग तुम्हारे निकले|
हजारो जबावों से अच्छी है मेरी खामोशी
ना जाने कितने सवालों की आबरू रखी ।
रिश्तों में गर्माहट बरकरार रखिए,
मौसम तो अभी और सर्द होगा..!!
जब तक ये दिल तेरी ज़द में है
तेरी यादें मेरी हद में हैं।
तुम हो मेरे केवल मेरे ही
हर एक लम्हा इस ही मद में है ।
है दिल को तेरी चाह आज भी
ये ख्वाब ख्वाहिश-ऐ- बर में है ।
मुहब्बत इवादत है खुदा की
और मुहोब्बत उसी रब में है।
जब तक ये दिल तेरी ज़द में है
तेरी यादें मेरी हद में हैं।
तुम हो मेरे केवल मेरे ही
हर एक लम्हा इस ही मद में है ।
है दिल को तेरी चाह आज भी
ये ख्वाब ख्वाहिश-ऐ- बर में है ।
मुहब्बत इवादत है खुदा की
और मुहोब्बत उसी रब में है।
तेरी मुस्कुराहट पे दिल जानिश़ार हैं
तेरी मोहब्बत पे हम यू गिरफ्तार हैं!
नशा मुझ में है और मुझी में है हलचल
अगर होता नशा शराब में तो नाच उठती बोतल|
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई..,
आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई..!!