बात का ज़ख्म है तलवार के ज़ख़्मो के सिवा ।
कीजे क़त्ल मगर मुँह से कुछ इरशाद न हो ।।
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इस कब्र में भी
इस कब्र में भी सुकूं की नींद नसीब नही हुई गालिब…
रोज फरिश्ते आकर कहते है आज कौई नया शेर सुनाओ|
यकीन करो आज
यकीन करो आज इस कदर याद आ रहे हो तुम
जिस कदर तुम ने भुला रखा है मुझे|
मैं तो उस वक़्त से
मैं तो उस वक़्त से डरता हूँ कि वो पूछ न ले
ये अगर ज़ब्त का आँसू है तो टपका कैसे..
खुदा जाने कौनसा
खुदा जाने कौनसा गुनाह कर बैठे है हम कि,,,
तमन्नाओं वाली उम्र में तजुर्बे मिल रहे है|
इक अजब चीज़ है
इक अजब चीज़ है शराफ़त भी
इस में शर भी है और आफ़त भी|
कुछ है जो
कुछ है जो खत्म हो रहा है अंदर से
मेरे……
बेज़ुबान पहले भी हुआ हूँ पर..
… बे-अहसास नहीं !
मेरे होकर भी
मेरे होकर भी मेरे खिलाफ चलते हैं…
मेरे फैसले भी देख तेरे साथ चलते हैं!!
पूछ रहे हैं वो
पूछ रहे हैं वो मेरा हाल, जी भर रुलाने के बाद!
के बहारें आयीं भी तो कब? दरख़्त जल जाने के बाद!
इतेफाक देखिये शायर ने
इतेफाक देखिये शायर ने शायर के नज्म को देखा
इतमिनान से हैं वो जिसे शायर ने अपनी नज़्म में देखा|