इस कब्र में भी

इस कब्र में भी सुकूं की नींद नसीब नही हुई गालिब…

रोज फरिश्ते आकर कहते है आज कौई नया शेर सुनाओ|

कुछ है जो

कुछ है जो खत्म हो रहा है अंदर से
मेरे……
बेज़ुबान पहले भी हुआ हूँ पर..
… बे-अहसास नहीं !

पूछ रहे हैं वो

पूछ रहे हैं वो मेरा हाल, जी भर रुलाने के बाद!
के बहारें आयीं भी तो कब? दरख़्त जल जाने के बाद!