ख़त जो लिखा मैनें इंसानियत के पते पर !
डाकिया ही चल बसा शहर ढूंढ़ते ढूंढ़ते !
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ख़त जो लिखा मैनें इंसानियत के पते पर !
डाकिया ही चल बसा शहर ढूंढ़ते ढूंढ़ते !
अगर तुम्हें भूलाना मुमकिन होता तो कब के भूला दिये होते,
यूँ पैरों में मोच होते हुए भी चलना किसको पसंद है !!
कंही पर बिखरी हुई बातें कंही पर टूटे हुए वादे,
ज़िन्दगी बता क्या तेरी रज़ा है और क्या तेरे इरादे…
प्यार से चाहे सारे अरमान माँग लो ,
रूठकर चाहे मेरी मुस्कान माँग लो,
तमन्ना ये है कि ना देना कभी धोखा,
फिर हँसकर चाहे मेरी जान माँग लो…
खुद को मेरे दिल में ही छोड़ गए हो,
तुम्हे तो ठीक से बिछड़ना भी नहीं आया…
ना हूरों की तमन्ना है और न मैं परियो पे मरता हूँ…
वो एक भोली सी लड़की है मैं जिसे प्यार करता हूँ!
अच्छा हुआ कि तूने हमें तोड़ कर रख दिया,
घमण्ड भी तो बहुत था हमें तेरे होने का …..
जब सवालो के जवाब मिलना बंद हो जाए
तो समझ लो एक मोड़ लेना हैं रास्ते और रिश्ते में।।
जो जले थे हमारे लिऐ,
बुझ रहे है वो सारे दिये,
कुछ अंधेरों की थी साजिशें,
कुछ उजालों ने धोखे दिये..
भरी महफ़िल में इश्क़ का जिक्र हुआ
हमने तो सिर्फ़ आप की ओर देखा
और लोग वाह-वाह कहने लगे…