उस तीर से क्या शिकवा, जो सीने में चुभ गया, लोग इधर हंसते हंसते, नज़रों से वार करते हैं।
Tag: शर्म शायरी
एक शब्द है
एक शब्द है दुःख, कहो कई – कई तरह से फेर। दुःख ही दुःख है ज़िंदगी सुख की यहाँ नहीं ख़ैर।।
मुझे मालूम है..
मुझे मालूम है.. कि ऐसा कभी.. मुमकिन ही नही ! फिर भी हसरत रहती है कि.. ‘तुम कभी याद करो’ !!
अनदेखे धागों में
अनदेखे धागों में, यूं बाँध गया कोई की वो साथ भी नहीं, और हम आज़ाद भी नहीं…
हमारी शायरी पढ़ कर
हमारी शायरी पढ़ कर बस इतना सा बोले वो , कलम छीन लो इनसे .. ये लफ्ज़ दिल चीर देते है ..
मंजिल पर पहुंचकर
मंजिल पर पहुंचकर लिखूंगा मैं इन रास्तों की मुश्किलों का जिक्र, अभी तो बस आगे बढ़ने से ही फुरसत नही..
तू भी तो
तू भी तो आइने की तरह बेवफा निकला, जो सामने आया उसी का हो गया..
कभी कभी यूँ भी
कभी कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है हमसे पूछो इज़्ज़त वालों की इज़्ज़त का हाल कभी हमने भी इस शहर में रह कर थोड़ा नाम कमाया है उससे बिछड़े बरसों बीते लेकिन आज न जाने क्यों आँगन में हँसते बच्चों को बे-कारण… Continue reading कभी कभी यूँ भी
खुदगर्ज़ बना देती है
खुदगर्ज़ बना देती है तलब की शिद्दत भी,, प्यासे को कोई दूसरा प्यासा नहीं लगता..।।
ग़लतफहमी की गुंजाइश
ग़लतफहमी की गुंजाइश नहीं सच्ची मुहब्बत में जहाँ किरदार हल्का हो कहानी डूब जाती है..