आखरी हिचकी तेरे
पहलू में आये
मौत भी मैं
शायराना चाहता हूँ…
Tag: शर्म शायरी
बेच डाला है
बेच डाला है, दिन का हर लम्हा;
रात, थोड़ी बहुत हमारी है!
वो जब पास मेरे होगा
वो जब पास मेरे होगा तो शायद कयामत होगी….,
अभी तो उसकी शायरी ने ही तवाही मचा रखी है.
बाँटने निकला है
बाँटने निकला है वो फूलों के तोहफ़े शहर में,
इस ख़बर पर हम ने भी,
गुल-दान ख़ाली कर दिया|
आया था किस काम से
आया था किस काम से,
तू सोया चादर तान।
सूरत संभाल ए गाफिल,
अपना आप पहचान।।
थे तो बहुत मेरे भी
थे तो बहुत मेरे भी इस दुनियां में कहने को अपने,
पर जब से हुआ है इश्क हम लावारिस हो गए !!
नजाकत तो देखिये
नजाकत तो देखिये, की सूखे पत्ते ने डाली से कहा,
चुपके से अलग करना वरना लोगो का रिश्तों से भरोसा उठ जायेगा !!
मुझे कुबूल नहीं
मुझे कुबूल नहीं खुद ही दूसरा चेहरा,
ख़ुशी तो मुझ को भी अक्सर तलाश करती है…
कभी इश्क़ करो
कभी इश्क़ करो और फिर देखो इस आग में जलते रहने से..
कभी दिल पर आँच नहीं आती कभी रंग ख़राब नहीं होता..
कहाँ उलझा पड़ा है
कहाँ उलझा पड़ा है तू उन छोटी छोटी बातों में
चल कोई बड़ी बात से हम अब ये रिश्ता ख़त्म करते हैं