प्रेम से देती है, वह है “बहन”
झगङकर देता है, वह है “भाई”
पुछकर देता है, वह है “पिताजी”
और बिना माँगे सबकुछ दे देती है
वह है…”माँ'”
Tag: शर्म शायरी
अजीब खेल है
अख़बार का भी अजीब खेल है
सुबह अमीर की चाय का मजा बढाता है
और रात में गरीब के खाने की थाली बन जाता है…!
वो लमहा भी
जरूरी नही की हर समय लबो पर खुदा का नाम आये ।।
वो लमहा भी इबादत का होता है…
जब इनसान किसी के काम आये…
जलने वालों की दुआ
जलने वालों की दुआ से ही सारी बरकत है..!!
वरना…
अपना कहने वाले लोग तो याद
भी नही करते….!
Yeh Bhhegi Palkein
Woh Baad Muddat Ke Jab Mila To Uss Ne Poocha ..
Yeh Khushk Zulfein ..
Yeh Bhhegi Palkein ..
Yeh Dasht Aankhein ..
Yeh Kaasni Lab ..
Kidhar Ganwa Diye ..?
Woh Shokh Aankhein ..
Woh Narm Baatein ..
Woh Surkh Aariz..
Woh Garm Saansein ..
Woh Khil Ke Hansna ..
Woh Chahchahana ..
Kya Hua Hai.. ?
Kidhar Gaye Sab.. ?
To Main Yeh Bola ..
Mohabbaton Ka Asool Hai Yeh,
Aur Wafa Ka Sila Yahi Hai,
Luta Ke Sapney,
Ganwa Ke Aankhein,
Mohabbaton Mein Mila Yahi Hai.
Laakh samjhaya magar nahin maane,
Woh Jaan-Jaan kahte thhey ;
Jaan lekar hi maane.
छेड़ने लगीं सहेलियां
छेड़ने लगीं सहेलियां उसकी उसको..मुजसे मिलने के बाद ..
कि रंग क्यों बदला है तेरे होठों का उसको मिलने के बाद ..
लेकर आना उसे
लेकर आना उसे मेरे जनाजे में,
एक आखरी हसीन मुलाकात होगी..!
मेरे जिस्म में जान न हो मगर,
मेरी जान तो मेरे जिस्म के पास होगी..!!
आज घोके मै है
अजीब उलजन मै हु मे
दिल आज घोके मै है
ओर घोकेबाज दिल मै……
Koi hamse pyaar
Koi hamse pyaar kare to ham jaise he vaise kare ,
koi hame badalkar pyar kare o pyaar nahi souda hai
ख़्वाब की तरह
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऐसी तन्हाई के मर जाने को जी चाहता है
घर की वहशत से लरज़ता हूँ मगर जाने क्यूँ
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है
डूब जाऊँ तो कोई मौज निशाँ तक न बताए
ऐसी नद्दी में उतर जाने को जी चाहता है
कभी मिल जाए तो रस्ते की थकन जाग पड़े
ऐसी मंज़िल से गुज़र जाने को जी चाहता है
वही पैमाँ जो कभी जी को ख़ुश आया था बहुत
उसी पैमाँ से मुकर जाने को जी चाहता है”