वो मेरी आखरी सरहद हो जैसे, सोच जाती ही नहीं उस से आगे…
Tag: शर्म शायरी
आँगन आँगन नहीं होता
वो आँगन आँगन नहीं होता जहाँ बेटियाँ नहीं खेलतीं वो रसोई रसोई नहीं होती जहाँ मांयें रोटियाँ नहीं बेलतीं ।
कैसे पढ़ते हो जनाज़ा
सुनो, कैसे पढ़ते हो जनाज़ा उसका वो लोग जो अंदर से मर जाते है|
मेरे नसीब में
अजीब नींद मेरे नसीब में लिखी है… पलकें बंद होती है… तो दिल जाग जाता है…
वो जब देखेगी
वो जब देखेगी उलझ सा जाऊँगा, नज़रे मिलाऊ या नज़र भर देखू।
सांप बेरोजगार हो गये
किसी ने क्या खूब लिखा है….. सांप बेरोजगार हो गये, अब आदमी काटने लगे
टूटता हुआ तारा
टूटता हुआ तारा सबकी दुआ पूरी करता है.. क्यों के उसे टूटने का दर्द मालूम होता है….
इतनी मोहब्बत दूंगा
हो मेरी, कि इतनी मोहब्बत दूंगा । लोग हसरत करेंगे, तेरे जैसा नसीब पाने को ।.
मेरी आखरी सरहद हो जैसे
वो मेरी आखरी सरहद हो जैसे, सोच जाती ही नहीं उस से आगे…
देख ली समंदर
देख ली समंदर की दरियादिली…, साँसें ले कर…लाश बाहर फेंक दी…।