किस्मत की लकीरों में नहीं था नाम उसका शायद,
जबकि उनसे मुलाकात तो हर रोज़ होती थी।
Tag: शर्म शायरी
क्यूँ नहीं महसूस होती
क्यूँ नहीं महसूस होती उसे मेरी तकलीफ,
जो कहते थे बहुत अच्छे से जानते हैं तुझे।
अभी कमसिन हैं
अभी कमसिन हैं जिदें भी हैं निराली उनकी,
इसपे मचले हैं हम कि दर्द-ए-जिगर देखेंगे।
जाने कितनी रातों की
जाने कितनी रातों की नीदें ले गया वो,
जो पल भर मौहब्बत जताने आया था।
अपने वजूद पर
अपने वजूद पर, इतना न इतरा ए ज़िन्दगी,
वो तो मौत है, जो तुझे मोहलत देती जा रही है…..
उनका ईश्क चाँद जैसा था …
उनका ईश्क चाँद जैसा था … पुरा हुआ…तो घटने लगा…!!
चर्चाएं खास हो
चर्चाएं खास हो तो किस्से भी ज़रूर होते है….
उंगलियां भी उन्ही पर उठती है जो मशहूर होते है…
कुछ इस तरह से
कुछ इस तरह से
लिपटी थी फूल से तितली
पता चल ही न सका..
किसे कौन ज्यादा प्यार करता है|
खुद को भी
खुद को भी कभी महसूस कर लिया करो यारों
कुछ रौनकें खुद से भी हुआ करती हैं.!!
भूल न जाऊं
भूल न जाऊं माँगना उसे हर नमाज़ के बाद,
यही सोच कर हमने नाम उसका दुआ रक्खा है।