इन्तेजार तो अब किसी का भी नहीं है,
फिर जाने क्यूँ पलटकर देखने की आदत नहीं गई…
Tag: शर्म शायरी
दिल तुम्हारी तरफ
दिल तुम्हारी तरफ कुछ यूँ झुका सा जाता है..
किसी बेइमान बनिए का तराज़ू हो जैसा..
अपनी दुनिया में
तुम सो जाओ अपनी दुनिया में आराम से, मेरा अभी इस रात से कुछ हिसाब बाकी है.!!
मत पहनाओ इन्हें
मत पहनाओ इन्हें मनचाहा लिबास
रिश्ते तो बिना श्रृगांर ही अच्छे लगते हैं…
देखेंगे अब जिंदगी
देखेंगे अब जिंदगी चित होगी या पट,
हम किस्मत का सिक्का उछाल बैठे हैं।
इस शहर में
इस शहर में मज़दूर जैसा दर-बदर कोई नहीं..
जिसने सबके घर बनाये उसका घर कोई नहीं..
अब इस से बढ़कर
अब इस से बढ़कर क्या हो विरासत फ़कीर की..
बच्चे को अपनी भीख का कटोरा तो दे गया..
ये सगंदिलो की दुनिया है
ये सगंदिलो की दुनिया है,संभलकर चलना गालिब, यहाँ पलकों पर बिठाते है, नजरों से गिराने के लिए…
मेरे मरने पर
मेरे मरने पर किसी को ज़यादा फर्क ना पड़ेगा..
बस एक तन्हाई रोएगी की मेरा हमसफ़र चला गया..
यहां गरीबों को
यहां गरीबों को मरने की जल्दी इसलिए भी है..
के जिंदगी की कशमकश में कफन महँगा ना हो जाएँ..