जब कोई अपना मर जाता है ना साहिब…..!
फिर कब्रिस्तानों से डर नही लगता…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
जब कोई अपना मर जाता है ना साहिब…..!
फिर कब्रिस्तानों से डर नही लगता…
धुप में कौन किसे याद किया करता हैं
पर तेरे शहर में बरसात तो होती होगी
हमारा तजरबा हमको सबक़ ये भी सिखाता है
कि जो मक्खन लगाता है वो ही चूना लगाता है|
अपनी नाराज़गी कि कोई वजह तो बताई होती,
हम ज़माने को छोड़ देते एक तुझे मनाने के लिए…
फिर कभी नहीं हो सकती मुहब्बत सुना तुमने
वो शख्स भी एक था और मेरा दिल भी एक ।
क्या करूंगा मैं तेरे शीशमहल में आकर…..!
जितने तेरे आईने हैं, उतने मेरे चहेरे भी नहीं…..!!
कभी कभार की मुलाक़ात ही अच्छी है,
कद्र खो देता है रोज रोज का आना जाना !!
आज उस हद तक सिर्फ दर्द ही दर्द है….
जिस हद तक उससे मोहब्बत की थी….
जिंदगी की राहों में
मुस्कराते रहो हमेशा !
क्योंकि,
उदास दिलों को
हमदर्द तो मिलते हैं,
पर, हमसफ़र नहीं !
रूह तो जिसकी थी वो ले गया,जिस्म के दावेदार यहाँ हज़ारों हैं!