जो जिंदगी थी मेरी जान..!तेरे साथ गई बस अब तू उम्र के नक़्शे में वक़्त भरना.!
Tag: शर्म शायरी
शाम का वक्त
शाम का वक्त हो और ‘शराब’ ना हो…!इंसान का वक्त इतना भी ‘खराब’ ना हो..
संभाल के रखना
संभाल के रखना अपनी पीठ को यारो…. “‘शाबाशी’”और ‘खंजर’ दोनो वहीं पर मिलते है ….
शहर के परिन्दे भी
शहर के परिन्दे भी जानते है पता मेरा, बस तुम्हारे ही कदम इस चौखट पर पड़े नहीं !!
मत पूछ मेरे जागने की
मत पूछ मेरे जागने की बजह ऐ-चांद, तेरा ही हमशक्ल है वो जो मुझे सोने नही देता….
तकिये के नीचे दबा कर
तकिये के नीचे दबा कर रखे है तुम्हारे ख़याल, एक तस्वीर , बेपनाह इश्क़ और बहुत सारे साल.
सीधा साधा दीखता हूँ..
सीधा साधा दीखता हूँ.. अब रोल बदल दूंगा, जिसदिन जिद में आ गया माहौल बदल दूंगा
घुट घुट के जीता रहे
घुट घुट के जीता रहे फ़रियाद न करे, लाएँ कहाँ से, ऐसा दिल तुम्हें याद न करे…
मैं थक गया था
मैं थक गया था परवाह करते-करते…..जब से लापरवाह हूँ, आराम सा हैं..
देर तलक सोने की आदत
देर तलक सोने की आदत छूट गयी माँ का आँचल छूटा जन्नत छूट गयी बाहर जैसा मिलता है खा लेते हैं घर छूटा खाने की लज़्ज़त छूट गयी