सुकून नसीब नहीं है मुझे, उजालों में…
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चिराग लेकर, अंधेरा तलाश करता हूं…
Tag: शर्म शायरी
बहुत करीब से
बहुत करीब से अंजान बन के गुज़रे हैं वो….
जो बहुत दूर से पहचान लिया करते थे…..
मौला तू भी
मौला तू भी कमाल करता है।
आँखे ब्लैक & व्हाइट देता है।
और ख़्वाब रंगीन दिखाता है ।
तमाम उमर जिंदगी से
तमाम उमर जिंदगी से दूर रहे
तेरी खुशी के लिए तुझसे दूर रहे
अब इससे बढ़कर वफ़ा – ए -सजा क्या होगी
की तेरे हो कर भी तुझसे दूर रहे ??
तुम हवा बन सको
तुम हवा बन सको , नाप लू में गगन
पर में कैसे लडू , तेज़ तूफ़ान से
और छोड़ा अगर तुमने तीर ए नज़र
ये परिंदा चला जायेगा जान से|
ये दुनिया बहुत
ये दुनिया बहुत बे-रहम है दोस्तो…
तकलीफ देकर खुशी भी मना लेती है…
ना दिल से होता
ना दिल से होता है, ना दिमाग से होता है;
ये प्यार तो इत्तेफ़ाक़ से होता है;
पर प्यार करके प्यार ही मिले;
ये इत्तेफ़ाक़ भी किसी-किसी के साथ होता है।
तेरे मैखाने का
तेरे मैखाने का दस्तूर भी अजीब है साकी
शराब उनको मिलती है …जिनको पीना नहीं आता…
मेरे चेहरे सा
मेरे चेहरे सा ना अंदाज लगा कि ये उम्र…
मुझ पर बीती है बहुत,मैंने गुज़ारी कम है..!!
सर में दर्द का बहाना
सर में दर्द का बहाना करके,
हम टूट के रोते है तेरी यादों में अक्सर|