कहीं और सिर टिका लूँ तो आराम नहीं आता
बेअक्ल दिल भी पहचानता है कन्धा तुम्हारा….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कहीं और सिर टिका लूँ तो आराम नहीं आता
बेअक्ल दिल भी पहचानता है कन्धा तुम्हारा….
कभी नूर-ओ-रँग भरे चेहरे से
इन घनी जुल्फोँ का पर्दा हटाओ,जरा हम भी तो देखेँ,
आखिर
चाँद होता कैसा है….!!!
हो गई थी कुछ इस कदर करीब तू मेरे,
के अब इन फासलों में भी तेरी खुशबु आती है..!!
नजर झुका के जब भी वो,गुजरे है करीब से….
हम ने समझ लिया की आज का आदाब अर्ज हो गया.
तेरी यादो की उल्फ़त से सजी हे महफिल मेरी…
में पागल नही हूँ जो तुझे भूल कर वीरान हो जाऊ…
उनके रूठ जाने में भी एक राज़ है साहब,
वो रूठते ही इसलिए है की कहीं अदायें न भूल जाएं।।
आपके चलने की भी क्या खूब अदा है
तेरे हर कदम पे एक दिल टूटता है|
मतलबी दुनिया के लोग खड़े है, हाथों में पत्थर लेकर……..!!
मैं कहाँ तक भागूं, शीशे का मुकद्दर लेकर…………..!!
तकलीफ़ की बात ना करो साहेब..
बहुत तकलीफ़ होती है..