जिसकी तलवार की छनक से अकबर

जिसकी तलवार की छनक से
अकबर का दिल घबराता था
वो अजर अमर वो शूरवीर वो महाराणा कहला
ता था
फीका पड़ता था तेज सूरज का ,
जब माथा ऊचा करता था ,
थी तुझमे कोई बात राणा , अकबर भी तुझसे ड
रता था

तू छोड़ दे कोशिशें..

तू छोड़ दे कोशिशें..
इन्सानों को पहचानने की…!

यहाँ जरुरतों के हिसाब से ..
सब बदलते नकाब हैं…!

अपने गुनाहों

पर सौ पर्दे डालकर.
हर शख़्स कहता है-

” ज़माना बड़ा ख़राब है।”

हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ

हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए
कभी तो हौसला कर के नहीं कहा जाए

तुम्हारा घर भी इसी शहर के हिसार में है
लगी है

आग कहाँ क्यूँ पता किया जाए

जुदा है हीर से राँझा कई ज़मानों से
नए सिरे से कहानी को फिर लिखा जाए

कहा गया है सितारों को छूना मुश्किल है
कितना सच है कभी तजरबा किया जाए

किताबें

यूँ तो बहुत सी हैं मेरे बारे में
कभी अकेले में ख़ुद को भी पढ़ लिया जाए