बंदगी हमने छोड़ दी फ़राज़
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ..
Tag: व्यंग्य
इस से पहले कि
इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ए दोस्त हम जुदा हो जाएँ
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ
मैं दाने डालता हूँ
मैं दाने डालता हूँ ख्यालों के
ये लफ्ज़ कबूतरों से चले आतें हैं|
एक सांस की डोरी
दिल तोड़ के जाने वाले सुन !
दो और भी रिश्तें बाक़ी हैं
एक सांस की डोरी अटकी है
एक प्रेम का बंधन बाक़ी है
बङा फर्क है
बङा फर्क है,तेरी और मेरी मोहब्बत में..!
तू परखता रहा और हमने यकीन में एक उम्र गुजार दी..!!
सलीका तुमने परदे का
सलीका तुमने परदे का बड़ा अनमोल रख्खा है..
यही निगाहें कातिल हैं इन्ही को खोल रख्खा है..
इंसान को बोलना सीखने में
इंसान को बोलना सीखने में दो साल लगते हैं
लेकिन ,
कोनसा लफ्ज़ कहाँ बोलना है
ये सीखने में पूरी ज़िन्दगी गुजर जाती है,,,
तज़ुर्बा है मेरा….
तज़ुर्बा है मेरा…. मिट्टी की पकड़
मजबुत होती है,
संगमरमर पर तो हमने …..पाँव फिसलते देखे हैं…!
तूने मेरी मोहब्बत की
तूने मेरी मोहब्बत की गहराईयों को समझा ही नहीं ऐ सनम..!
तेरे बदन से जब दुपट्टा सरकता था तो हम “अपनी” नज़रे झुका लेते थे..!
हजारों शेर मेरे सो गये
हजारों शेर मेरे सो गये कागज की कब्रों में
अजब पिता हूँ कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता|