जागा हुआ ज़मीर वो आईना है सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूँ मैं|
Tag: व्यंग्य
मैं अपनी ज़ात में
मैं अपनी ज़ात में नीलाम हो रहा हूँ ग़म-ए-हयात से कह दो ख़रीद लाये मुझे|
लम्हों मे खता की
लम्हों मे खता की है सदियों की सज़ा पाई|
फ़न तलाशे है
फ़न तलाशे है दहकते हुए जज़्बात का रंग देख फीका न पड़े आज मुलाक़ात का रंग|
वक्त इंसान पे
वक्त इंसान पे ऐसा भी कभी आता है . राह में छोड़ के साया भी चला जाता हैवक्त इंसान पे ऐसा भी कभी आता है . राह में छोड़ के साया भी चला जाता है|
फिर वार हुआ
फिर वार हुआ दिल की दिवारो पर… फिर ऐसे जख्म मिलें है कि हम मरहम ना ढुंढ पाए…
सूरज रोज़ अब भी
सूरज रोज़ अब भी बेफ़िज़ूल ही निकलता है । तुम गये जब से उजाला नहीं हुआ….
मुझे लत है!!
मुझे लत है!! मै खुद को खोद खोद कर.. खुद में पीड़ा खोजता हूँ!! और फिर उस पीड़ा के नशे में.. मै खुद को दफन कर देता हूँ !!
जीने का ज्यादा तजुर्बा
मुझे ज़िन्दगी जीने का ज्यादा तजुर्बा तो नहीं हैं पर सुना है लोग सादगी से जीने नहीं देते|
मुझे तालीम दी है
मुझे तालीम दी है मेरी फितरत ने ये बचपन से … कोई रोये तो आंसू पौंछ देना अपने दामन से ….