एक आँसू कोरे काग़ज़ पर गिरा
और, अधूरा ख़त मुक्कमल हो गया !!!
Tag: व्यंग्य
अंजान अगर हो तो
अंजान अगर हो तो गुज़र क्यों नहीं जाते…
पहचान रहे हो तो ठहर क्यों नहीं जाते
जो उनकी आँखों से
जो उनकी आँखों से बयां होते हैं,
वो लफ्ज़ शायरी में कहाँ होते हैं।
पहले भी था
पहले भी था अब भी है
इश्क़ हमारा बाग़ का चौकीदार हो गया|
खूबसूरती न सूरत में है
खूबसूरती न सूरत में है न लिबास में….
निगाहें जिसे चाहे उसे हसीन कर दें|
हम जिंदगी में
हम जिंदगी में बहुत सी चीजे खो देते है,
“नहीं” जल्दी बोल कर और “हाँ” देर से बोल कर..
सर क़लम होंगे
सर क़लम होंगे कल यहाँ उन के
जिन के मुँह में ज़बान बाक़ी है|
चलो इश्क़ में
चलो इश्क़ में कुछ यु अंदाज़ अपनाते हैं
तुम आँखें बंद करो हम तुम्हे सीने से लगाते हैं|
ऐ जिन्दगी तेरे जज्बे को
ऐ जिन्दगी तेरे जज्बे
को सलाम…
मंजिल पता है के मौत है
फिर भी दौड रही है….।।
एक मैं हूँ
एक मैं हूँ , किया ना कभी सवाल कोई, एक तुम हो , जिसका कोई नहीं जवाब…